‘गोधन’ से बरस रहा धन: महिला समूहों ने बेचा 2 करोड़ से अधिक का वर्मी कम्पोस्ट…

छत्तीसगढ़।।  सरकार की ‘गोधन’ न्याय योजना से जहाँ धन बरस रहा है, तो वहीं इससे राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा भी मिल रहा है. यह योजना साल भर में ही सफल क्रियान्वयन के साथ आज प्रदेश की देश भर की सबसे चर्चित योजनाओं में शुमार हो चुकी है. योजना की सफलता ने कई राज्यों को प्रभावित किया है. दूसरे प्रदेशों से अधिकारियों की टीम योजना को जानने और समझने के लिए पहुँचने लगी है।Screenshot 2021 07 31 17 49 22 06 console corptech

कृषक परिवार से आने वाले और खेती-किसानी में ‘गोबर’ की अहमियत को अच्छी तरह से समझने वाले राज्य के मुखिया भूपेश बघेल ने एक साल पहले 20 जुलाई 2020 को गोधन न्याय योजना की शुरुआत की योजना की शुरुआत के बाद से लगातार वें खुद इसकी निगरानी भी करते रहे, पशुपालकों, गौठान समितियों, स्व-सहायता महिला समूहों से चर्चा भी करते रहे. दरअसल मुख्यमंत्री बघेल का उद्देश्य है राज्य को जैविक खेती राज्य बनाने का. लिहाजा उन्होंने योजना के तहत पशुपालकों से गोबर खरीदना शुरू किया. खरीदे गए गोबर का गौठान में वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जा रहा और बाजार कम दामों पर इसे किसानों को बेचा जा रहा है. इससे जहाँ जैविक खेती की ओर कदम बढ़ रहे हैं, तो वहीं पशुपालकों को भी लाखों रुपये मिल रहे हैं. साथ ही योजना से जुड़ीं महिला समूहों को इससे रोजगार मिला है और वें भी अच्छी कमाई कर रही हैं।Screenshot 2021 07 31 17 50 24 54 console corptech

योजना से मिले लाभ को जानने के लिए आपको कांकेर जिले की स्टोरी बताते हैं. आदिवासी बाहुल्य इस जिले में गोधन न्याय योजना को लेकर शानदार काम हुआ है. जिले में जहाँ पशुपालकों को 2 करोड़ 28 लाख का भुगतान किया गया, तो वहीं महिला समूहों ने भी 2 करोड़ 17 लाख का वर्मी कम्पोस्ट बेचकर रिकॉर्ड बना दिया है।

कांकेर जिले के 203 गौठानों में कृषि विभाग के तकनीकी मागदर्शन में महिला स्व-सहायता समूहों ने उच्चगुणवत्ता युक्त 23 हजार 711 क्विंटल वर्मी खाद और 7 हजार 500 क्विंटल सुपर कम्पोस्ट खाद का उत्पादन किया है. इसमें से 19 हजार 500 क्विंटल वर्मी खाद एवं 4 हजार 500 क्विंटल सुपर कम्पोस्ट खाद का क्रय जिले के 16 हजार 350 किसानों द्वारा गया हैं. वर्मी कम्पोस्ट 10 रुपए प्रति किग्रा और सुपर कम्पोस्ट 6 रुपए प्रति किग्रा. दर से सहकारी समितियों के माध्यम से विक्रय किया जा रहा है।

कृषि अधिकारी नागेश यह भी जानकारी देते हैं कि वर्मी कम्पोस्ट खाद में 1.5 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.7 प्रतिश फास्फोरस और 0.8 प्रतिशत पोटेशियम उपलब्ध होता है. इससे भूमि की उपजाऊ क्षमता और जल संधारण की क्षमता में वृद्धि होती है। भूमि में वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करने से छोटे-छोटे केंचुओं के अण्डे भी खेतों में पहुंच जाते हैं. इससे भूमि के प्राकृतिक रंध्रों के साथ कार्बनिक क्षमता में वृद्धि होती है. ज्यादा मात्रा में उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता युक्त पैदावार प्राप्त होती है।

इन आँकड़ों से पता चलता है कि बस्तर अँचल में किसान जैविक खेती को लेकर किस तरह से जागरूक हो रहे हैं. वहीं इससे यह भी पता चलता है कि योजना को धरातल पर सफल बनाने काम किस लगन के साथ किया जा रहा है. इससे यह भी पता चल रहा है कि आने वाले दिनों में बस्तर रसायनिक खेती से मुक्त हो जाएगा. बस्तर में फिर महक जैविक खेती की होगी. बस्तर ही नहीं समूचे छत्तीसगढ़ में जैविक खेती की खुशबू बिखरेगी।

ये भी सच है कि जैविक राज्य में बनने में दशकों लग सकते हैं. लेकिन जिस मंशा और नीयत के सरकार काम कर रही और जिस तरह से किसान सरकार के साथ जुड़कर इसे गति दे रहे हैं उससे दिशा और दशा तो जरूर बदलेगी इससे इंकार नहीं किया जा सकता. क्योंकि किसान इस बात को अच्छी तरह समझते हैं। कि रयासनिक खेती से उपज भले ही ज्यादा होती है, लेकिन धीरे-धीरे इससे खेती को नुकसान भी हो रहा है. जमीन की उपजाऊ क्षमता एक समय के साथ खत्म हो जाएगी. जमीने बंजर हो जाएंगी. वहीं स्वास्थ्यगत समस्याएं भी बढ़ती जाएंगी. लिहाजा सीमित संख्या में ही सही किसानों ने जैविक खेती प्रारंभ तो कर दिया है।

उम्मीद करते हैं भूपेश सरकार की गोधन का धन किसानों, पशुपालकों और महिला समूहों के लिए इसी तरह बरसते रहे। जैविक खेती की ओर कदम बिना रुके बढ़ते रहे..

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