बलरामपुर:उपेक्षा का शिकार हुआ ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थल डीपाडीह, असुविधाओं का लगा अम्बार, पेयजल के लिए जूझते है पर्यटक

उज्जवल तिवारी, बलरामपुर।। जिला मुख्यालय बलरामपुर से लगभग 60 किलोमीटर दूर शंकरगढ़ विकासखंड में स्थित डीपाडीह का ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थल प्रशासनिक उपेक्षा के कारण असुविधाओं से जूझ रहा है। गांव में बिजली होने के बाद भी पुरातात्विक स्थल परिसर में न तो बिजली है और न ही पेयजल की व्यवस्था जिससे दूर-दराज से आने वाले लोग यहां आकर पानी के लिये भटकते हुए दिखाई देते हैं।

बता दें कि शंकरगढ़ विकासखंड मे स्थित डीपाडीह ग्राम प्राचीन स्थल के रूप में पूरे प्रदेश में विख्यात है। प्रदेश के अलावा दूसरे प्रदेशों से भी लोग यहां प्राचीन मंदिरों तथा हजारों साल पुरानी मूर्तियों को देखने के लिये आते हैं मगर इतनी दूर आने के बाद उन्हें तब निराशा हाथ लगती है जब प्यास लगने पर उन्हें यहां पानी तक नसीब नहीं होता।

संग्रहालय परिसर में लगे हैण्डपंप से निकलता है लाल पानी

कहने को तो परिसर में एक हैण्डपंप है मगर उसका पानी भी बिल्कुल पीने लायक नहीं है। हैंडपंप से निकलने वाला पानी बिल्कुल लाल होता है जिसे कोई भी पीना नहीं चाहता। यहां तैनात चौकीदारों के द्वारा इस संबंध पूछे जाने पर उन्होनें बताया कि परिसर में पेयजल की समस्या को लेकर उनके द्वारा भी सैकड़ों बार अधिकारियों को सूचित किया जा चुका है मगर इस ओर कोई ध्यान नहीं देना चाहता। प्रशासन के इसी ढुलमुल रवैये के कारण खुद चौकीदार अपने-अपने घरों से बोतल में पानी लेकर आते हैं जिससे ड्यूटी समय में वे पानी पी सकें।

बिजली की भी नहीं है व्यवस्था

डीपाडीह ग्राम में बिजली होने के बाद भी संग्रहालय परिसर में इसकी व्यवस्था नहीं है। स्थानीय लोगों ने बताया कि वर्ष 2005 में अविभाजित सरगुजा जिला अंतर्गत आने वाले इस ग्राम में जिला मुख्यालय अम्बिकापुर से अक्षय उर्जा विकास अभिकरण (क्रेडा) की ओर से संग्रहालय परिसर में एक सोलर पैनल लगाया गया था जो वर्ष 2008 में खराब हो गया। इसके बाद कई बार क्रेडा के अधिकारी व कर्मचारियों का यहां आना-जाना लगा रहा मगर बिजली व्यवस्था सुचारू नहीं हो सकी तथा वही स्थित आज भी व्याप्त है। वर्तमान में परिसर में केवल सोलर पैनल के एंगल ही बचे हुए हैं जबकि सोलर प्लेट कबाड़ हो चुके हैं जिन्हें स्थानीय कर्मचारियों द्वारा एक कमरे में रख दिया गया है। 

वन आच्छादित होने के कारण परिसर में हमेशा सांप-बिच्छू निकलते रहते हैं जिससे यहां के कर्मचारी भी भयभीत रहते हैं। बिजली न होने के कारण बरसात के मौसम में यहां की स्थिति और खराब हो जाती है।

बन सकता है राजस्व का अच्छा माध्यम

वर्तमान में डीपाडीह संग्रहालय परिसर में लोगों का प्रवेश तथा घूमना-फिरना बिल्कुल निःशुल्क है। औसतन यहां महीने में 500 से ज्यादा लोगों का आना-जाना होता है इसी प्रकार मकर संक्रांति अथवा शिवरात्रि के समय यहां लोगों का हुजूम उमड़ता है जिनसे किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता। यदि प्रशासन प्रवेश हेतु शुल्क निर्धारित कर दे तो यह राजस्व का अच्छा माध्यम बन सकता है साथ ही प्रवेश शुल्क के रूप में आने वाले पैसों से परिसर को और अच्छे से विकसित करने में भी मदद मिलेगी।

संग्रहालय भवन हो गया है जर्जर

खुदाई के दौरान सही सलामत मिली प्राचीन मूर्तियों तथा बर्तनों को रखने के लिये परिसर में बनाये गये संग्रहालय भवन की हालत जर्जर हो चुकी है अथवा यह कहा जा सकता है कि निर्माण के समय ही भवन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। स्थानीय ग्रामीण तो यह तक कहते हैं कि हजार साल पुरानी मूर्तियां तो आज भी सही हैं मगर लगभग 10 साल पहले बना भवन अब सही नहीं रहा। भवन की हालत इतनी खराब है कि बरसात में जगह-जगह से पानी रिसने लगते हैं। इसकी सुंदरता बढ़ाने के लिये लगाये गये टाईल्स भी टूट-फूट गये हैं जो इसकी सुंदरता पर ग्रहण लगा रहे हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कुछ समय बाद इस संग्रहालय के भी यहां अवशेष ही शेष रह जाएंगे