रूस यूक्रेन पर बरसा रहा गोला-बारूद, छत्तीसगढ़ के किसानों की पेट पर पड़ रही लात…
रायपुर।। यूक्रेन पर रूस के हमले में कौन सही है और कौन गलत ये तो अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का मसला है, लेकिन किसी भी युद्ध के चलते अगर एक शख्स के पेट पर भी लात पड़ती है तो उसकी कोई माफी नहीं हो सकती है। खासकर जब अपने घर के किसी शख्स की रोजी-रोटी का नुकसान होता है तो इंसान के अंदर तक जो पीड़ा होती है उसे बयां नहीं किया जा सकता है। रूस यूक्रेन पर तरह-तरह के अत्याधुनिक गोले-बारूद बरसा रहा है, लेकिन इसका सीधा असर 5300 किलोमीटर दूर भारत के राज्य छत्तीसगढ़ पर पड़ रहा है। इस खबर को पढ़ते हुए आप सोच रहे होंगे कि इस युद्ध के चलते दुनिया भर में ना जाने कितने लोगों को नुकसान हो रहा है फिर हम भारत के छोटे राज्य के कुछ चंद लोगों की अलग से बात क्यों कर रहे हैं। इसपर यही का जा सकता है कि हम सब दुनिया से पहले अपने घर-परिवार की सही फिक्र करें तो वह सच्चा मानव धर्म है। किसी ने ठीक ही कहा है कि हर कोई अगर अपने घर की टेंशन को दूर करे तो शायद दुनिया की सारी परेशानी अपने आप दूर हो जाएगी।
युद्ध के चलते छत्तीसगढ़ी मिठास से मरहूम यूक्रेन वासी
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अमरूद के बड़े कारोबारी कबीर चंद्राकर ने बताया कि भारत दुनियाभर में अमरूद का निर्यात करता है। अमरूद निर्यात में किसानों की अच्छी कमाई होती है। कुल अमरूद निर्यात का करीब 10 फीसदी छत्तीसगढ़ से होता है। पिछले दो साल से कोरोना होने के चलते किसान और फल कारोबारी पहले से परेशान थे अब हालात थोड़े सुधर रहे थे, लेकिन अब रूस-युक्रेन के युद्ध ने चिंता बढ़ा दी है। पिछले कुछ दिनों में विदेशी निर्यात काफी प्रभावित हुए हैं।
उन्होंने बताया कि फिलहाल अमरूद के रेट में प्रति किलो 5 रुपये गिरावट आई है। अगर युद्ध लंबा चलता है और इसमें दुनिया के दूसरे देश भी शामिल होते हैं तो छत्तीसगढ़ के अमरूद किसानों और कारोबारियों को कितना नुकसान होगा इसका अभी अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। बस इतना कह सकते हैं कि बड़ा नुकसान होगा।
छत्तीसगढ़ के दूसरे अमरूद कारोबारियों ने बताया कि सुर्खा के नाम से मशहूर सेबिया और सफेदा अमरूद की यूरोपीय देशों में भारी डिमांड है। वहां ये रिटेल मार्केट में दोनों अमरूद प्रति पीस करीब 50 से 100 रुपये में बिकते हैं। आमतौर पर दुबई के कारोबारी छत्तीसगढ़ी अमरूद को भारत से खरीदते हैं फिर उसे यूरोपीय मार्केट में सेल करते हैं। कारोबारियों का कहना है कि यूरोपीय मार्केट में डिमांड ही नहीं होगी तो भला दुबई के कारोबारी भारत से अमरूद क्यों खरीदेंगे।
कारोबारी कबीर चंद्राकर ने बताया कि कि चावल आदि सामान को आप स्टोर करके रख सकते हैं। लेकिन अमरूद सहित अन्य फ्रेश और फलों के साथ यह सुविधा नहीं है। छत्तीसगढ़ के अमरूद को समय से और पूरी सर्तकता के साथ स्टोर किया जाए तो इसकी लाइफ अधिकतम 15 दिनों की होती है। उसके बाद यह बेकार हो जाता है। ऐसे युद्ध के चलते अमरूद के कारोबार पर इसका असर दिखना तय है।
युक्रेन समेत यूरोपीय देशों में क्यों अमरूद की डिमांड
जानकार बताते हैं कि यूक्रेन समेत अन्य यूरोपीय देशों में भारत और एशियाई लोगों की भारी तादाद है। ऐसे में वे लोग भारतीय फल और सब्जी के बड़े कंज्यूमर हैं। इसके अलावा भारतीय अमरूद में जो स्वाद होता है वैसा दुनिया के किसी और जगह के अमरूद में नहीं है। इसलिए यूरोपीय देशों में इसकी भारी डिमांड होती है।
भारत सरकार के आंकड़े के मुताबिक 2013-14 में भारत 0.58 मिलियन डॉलर के अमरूद निर्यात करता था, जो 2021-22 में बढ़कर 2.09 मिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है। इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि भारतीय अमरूद की मिठास की दुनिया कितनी दीवानी है। भारत से यूरोपीय देशों में अमरूद का निर्यात मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से होता है।