The Kashmir Files : फिल्म नें ताजा की कश्मीरी पंडितों की नरसंहार की यादें, जानें कैसे हुई थी शुरूआत…
साल 2019 में विवेक अग्निहोत्री (Vivek Agnihotri) की फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ (The Tashkent Files) रिलीज हुई थी और यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई। इस फिल्म को दो नेशनल अवॉर्ड भी मिले थे। ‘द ताशकंद फाइल्स’ के बाद अब विवेक अग्निहोत्री ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) लेकर आए हैं, जिसमें उन्होंने 90 के दशक में कश्मीर में हुए कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं के नरसंहार और पलायन की कहानी को दर्शाया है।
इस फिल्म में अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती जैसे धुरंधर कलाकार तो हैं ही, लेकिन साथ ही फिल्म में पल्लवी जोशी और दर्शन कुमार जैसे मंझे हुए कलाकार भी नजर आएंगे। ‘द ताशकंद फाइल्स’ को दर्शकों और क्रिटिक्स से काफी सराहना मिली थी, तो अब देखना होगा कि क्या ‘द कश्मीर फाइल्स’ के जरिए विवेक अग्निहोत्री एक बार फिर दर्शकों का दिल जीत पाएंगे या नहीं? अगर आप इस फिल्म को देखने का प्लान बना रहे हैं, तो उससे पहले आप ये रिव्यू पढ़ सकते हैं।
कहां से शुरू हुआ था सिलसिला
हिंदू कश्मीरी पंडितों की हत्या का सिलसिला 1990 से पहले ही शुरू हो गया था। जब 1989 में श्रीनगर में कश्मीरी पंडितों के नेता पंडित टीका लाल टपलू की हत्या की गई थी। इसका आरोप जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के आतंकियों पर लगा था, लेकिन कभी भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके चार महीने के बाद 4 जनवरी 1990 को श्रीनगर से छपने वाले एक उर्दू अखबार में हिजबुल मुजाहिदीन ने अपने बयान में हिंदुओं को घाटी छोडऩे के लिए कहा गया था। वो समय ऐसा था जब हिंदू घाटी में बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं थें। उन्हें जिस तरह की धमकियां दी गई वो एक दर्दनाक सपने की तरह सच होती जा रही थीं।
हिंदूओं के घरों में घुस जाते थे उपद्रवी
हिंदूओं का घाटी में रहना काफी मुश्किल हो चला था। उनके घरों के दीवारों पर ‘हिंदू कश्मीर छोड़ों’ के पोस्टर चस्पा कर दिए गए थे। जिस भी हिंदू घर के बारे में जानकारी मिलती उन्हें आग के हवाले कर दिया जाता। हिंदू महिलाओं को तिलक या सिंदूर लगाने पर मजबूर किया जा रहा था। महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कर के मामले आम हो चले थे। उपद्रवी एके 47 लेकर घरों में घुस जाते और जो मन करता वो करते थे। हिंदू घरों की घडिय़ों को पाकिस्तान स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार सेट कराया जा रहा था।
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के आंकड़ों के अनुसार जनवरी 1990 में कश्मीर में 75,343 परिवार थे। 1990 और 1992 के बीच 70,000 से ज्यादा परिवार घाटी से पलायन कर गए। अनुमानित आंकड़ें के अनुसार 1990 से 2011 के बीच 399 कश्मीरी पंडितों की हत्या की। 1990 से अब तक कश्मीर में सिर्फ 800 हिंदू परिवार ही मौजूद हैं। 20वीं सदी की शुरुआत में जहां कश्मीरी पंडितों की संख्या करीब 10 लाख थी। जो मौजूदा समय में करीब करीब 9,000 रह गई है। करीब 80 साल पहले कश्मीरी पंडित कुल आबादी का करीब 15 फीसदी हिस्सा थे, जो 1991 तक सिर्फ 0.1 फीसदी बची थीं जबकि किसी समुदाय की आबादी 10 लाख से कम होकर करीब 10 हजार ही रह जाए तो उसे नरसंहार कहा जा सकता है।