मेट्रो स्टेशन पर छेड़छाड़, महिला कैप्टन ने दस साल बाद जीती कानूनी जंग, पढ़ें पूरा मामला

मेट्रो स्टेशन पर छेड़खानी का शिकार हुई महिला को आखिरकार दस साल बाद इंसाफ मिला है। सत्र अदालत ने सिक्योरिटी गार्ड को छेड़खानी का दोषी माना है। अब 10 अक्तूबर को कोर्ट उसे सजा सुनाएगी।

मेट्रो स्टेशन पर छेड़खानी का शिकार हुई महिला को इंसाफ के लिए एक दशक तक इंतजार करना पड़ा। भारतीय सेना में कैप्टन के पद पर तैनात महिला के साथ मेट्रो के महिला कोच के आगे सुरक्षा ड्यूटी पर तैनात शख्स ने ही छेड़खानी की थी। महिला अधिकारी ने मौके पर ही आरोपी को पकड़ कर डीएमआरसी अधिकारियों की उपस्थिति में पुलिस के सुपुर्द कर दिया था। लेकिन, चार साल बाद मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने आरोपी सिक्योरिटी गार्ड को बरी कर दिया।

महिला अधिकारी ने हार न मानते हुए मामले को सत्र अदालत में चुनौती दी। एक दशक बाद सत्र अदालत ने महिला के साथ हुई छेड़खानी की सत्यता पर मुहर लगाते हुए सिक्योरिटी गार्ड को दोषी करार दिया है। साकेत स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रशांत शर्मा की अदालत ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के आरोपी सिक्योरिटी गार्ड पारस नाथ को बरी करने के आदेश को रद्द कर दिया है।

कोर्ट 13 अक्तूबर को सुनाएगी सजा

अदालत ने कहा कि मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने इस बात पर तो यकीन किया कि आरोपी ने खुद अदालत में कबूला कि गलती से उसका हाथ पीड़िता को लगा हो सकता है। लेकिन, पीड़िता के बयानों को संबंधित अदालत ने सिरे से खारिज कर दिया, जबकि पीड़िता शिक्षित महिला है और एक उच्च पद पर आसीन है। सत्र अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस तमाम जद्दोजहद के बीच इस बात पर गौर करना जरूरी था कि पीड़ित महिला अधिकारी के पास सिक्योरिटी गार्ड को झूठे आरोप में फंसाने की कोई वजह नहीं थी। अदालत ने दोषी की सजा निर्धारित करने के लिए 13 अक्तूबर की तारीख तय की है।

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