छत्तीसगढ़ में शराब घोटाला… जानें कैसे हुई दो हजार करोड़ रुपये की हेराफेरी ?
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छत्तीसगढ़।। दिल्ली के बाद अब छत्तीसगढ़ में शराब घोटाला सामने आया है. प्रवर्तन निदेशालय (ED) का दावा है कि ये घोटाला पूरे दो हजार करोड़ रुपये का है. दावा ये भी है कि इस घोटाले में छत्तीसगढ़ के कई बड़े नेता और अफसर भी शामिल हैं।
इस मामले में मुख्य आरोपी बताए जा रहे अनवर ढेबर को ED ने गिरफ्तार कर लिया है. उसे मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया गया है. अदालत ने अनवर को चार दिन की ED की रिमांड पर भेज दिया है. अनवर ढेबर कांग्रेस नेता और रायपुर के मेयर एजाज ढेबर के भाई हैं।
न्यूज एजेंसी के मुताबिक, ED ने छत्तीसगढ़ के इस कथित शराब घोटाले के लिए अनवर ढेबर के साथ- साथ आईएएस अफसर अनिल टुटेजा को भी ‘सरगना’ बताया है।
ED का कहना है कि मामले में पूछताछ के लिए अनवर ढेबर को सात बार समन भेजा गया था, लेकिन वो जांच में शामिल नहीं हुआ. आखिरकार 5 मई की सुबह उसे रायपुर के एक होटल से गिरफ्तार कर लिया गया।
इससे पहले ED ने इसी साल मार्च में अनवर ढेबर के घर समेत छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और दिल्ली के 35 ठिकानों पर छापेमारी भी की थी।
क्या है ये पूरा घोटाला? कैसे इस पूरे घोटाले को अंजाम दिया गया? अनवर ढेबर पर क्या हैं आरोप? जानते हैं…
ED का क्या है दावा ?
• ED ने एक प्रेस रिलीज जारी कर इस पूरे घोटाले की – जानकारी दी है. ED का दावा है कि 2019 से 2022 के बीच ‘अकूत भ्रष्टाचार’ हुआ, जिसमें दो हजार करोड़ रुपये की ‘मनी लॉन्ड्रिंग’ के सबूत मिले हैं।
• ED ने बताया कि मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत की गई जांच में पता चला है कि अनवर ढेबर छत्तीसगढ़ में एक संगठित आपराधिक सिंडिकेट चला रहा है और उसे बड़े-बड़े राजनेताओं और सीनियर अफसरों का सपोर्ट हासिल है।
• ED का दावा है कि अनवर ने एक ऐसा नेटवर्क तैयार – किया है, जिससे छत्तीसगढ़ में बेचे जाने वाली शराब की हर बोतल पर अवैध वसूली की जाती है।
कैसे किया ये सारा खेल ?
- छत्तीसगढ़ में शराब का सारा कारोबार राज्य सरकार ही चलाती है. यहां 800 शराब की दुकानें हैं, जिन पर सरकार का नियंत्रण है. यहां प्राइवेट शराब की दुकानें खोलने की इजाजत नहीं है।
राज्य में बिकने वाली शराब का स्टॉक छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CSMCL) करता है. साथ ही शराब दुकान चलाने, बोतल बनाने और कैश कलेक्शन जैसे काम में लगने वाले लोगों के लिए भी टेंडर जारी करता है।
ED का कहना है कि अपनी राजनीतिक पहुंच का इस्तेमाल कर अनवर ढेबर CSMCL के कमिश्नर और एमडी का करीबी बना. उनकी मदद से CSMCL में विकास अग्रवाल और अरविंद सिंह जैसे अपने करीबियों को नौकरी दिलवाई. इस तरह से उसने छत्तीसगढ़ के शराब कारोबार की पूरी प्रक्रिया पर कब्जा कर लिया।
ऐसे किया उसने पूरा खेल…
पहला तरीका: 75-150 रुपये का कमीशन
- ED के मुताबिक, CSMCL जो शराब खरीद रही थी, उसके सप्लायर्स से ये सिंडिकेट हर बोतल पर 75 से 150 रुपये का कमीशन वसूल रहा था. ये कमीशन शराब की क्वालिटी और उसके प्रकार के हिसाब से तय किया जाता था।
दूसरा तरीका: कच्ची शराब से उगाही
- ED का कहना है कि अनवर ढेबर ने अपने लोगों के साथ मिलकर बेहिसाब तरीके से कच्ची शराब बनाई और उन्हें सरकारी दुकानों के जरिए बेचा।
कच्ची शराब की ये बिक्री का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा गया. से सारी बिक्री नकद में हुई. इसका एक रुपये भी सरकारी खजाने में जमा नहीं किया गया और सारी रकम सिंडिकेट की जेब में गई।
ED की जांच में ये भी सामने आया है कि 2019 से 2022 के बीच राज्य में 30 से 40 फीसदी अवैध शराब की बिक्री भी की गई. इससे 1200 से 1500 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया गया।
तीसरा तरीका: सालाना कमीशन
- इसके अलावा एक सालाना कमीशन भी होता था, जिसका भुगतान डिस्टिलर्स को डिस्टिलरी लाइसेंस हासिल करने और CSMCL की बाजार खरीद में एक तय हिस्सेदारी लेने में किया जाता था।
डिस्टिलर्स उन्हें आवंटित मार्केट शेयर के हिसाब से रिश्वत देते थे. इसी अनुपात में CSMCL खरीदारी करती थी।
इतना ही नहीं, विदेशी शराब की सप्लाई करने वालों से भी कमीशन लिया जाता था. विदेशी शराब बेचने का लाइसेंस अनवर ढेबर के करीबियों के पास था।
सबको बंट रहा था पैसा
- ED का कहना है कि चार साल में पूरे दो हजार – करोड़ रुपये का घोटाला किया गया. ये पैसा सिर्फ अनवर ढेबर के पास नहीं गया था।
बल्कि उसने अपना हिस्सा रखने के बाद अपने करीबियों तक भी पहुंचाया. इसमें बड़े-बड़े नेता और सीनियर अफसर शामिल हैं।
और क्या-क्या हैं आरोप?
ED ने बताया कि 2017 में शराब की खरीद और बिक्री के लिए CSMCL बनाई गई थी. लेकिन सरकार बदलने के साथ ही ये सिंडिकेट के हाथ का एक टूल बन गई।
आरोप है कि CSMCL से जुड़े कामों के लिए सारे कॉन्ट्रैक्ट इस सिंडिकेट से जुड़े लोगों को ही दिए जा रहे थे. ED का दावा है कि सिंडिकेट ने अवैध शराब की बिक्री से ‘बड़ा कमीशन’ कमाया, ये रकम अनवर ढेबर को दी गई और फिर उसने इसे राजनीतिक पार्टी तक साझा किया।